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सेवा भाव ( गौ रक्षा ) SERVICE SPIRIT


 सेवा भाव ( गौ रक्षा ) SERVICE SPIRIT


एक दिन मैं शाम को अपने स्कूटर से लौट रहा था तभी एक गाय मुझे नाले किनारे खड़ी दिखी देखते-देखते उसका पैर फिसल गया और वह नाले में जा गिरी, मै अपने स्कूटर से यह सब देख रहा था, स्कूटर चला रहा था और आगे बढ़ गया, पीछे मुड़कर देखा कि कोई भी उसे बचाने को नहीं आया।
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  सड़क पर काफी लोग पहले से मौजूद थे पर गाय को नाले में गिरा देख कोई उसे बचाने नहीं जा रहा था, सब खड़े होकर देख रहे थे क्योंकि नाला बहुत गहरा था और उसमें किचड बहुत अधिक था। उसके पीछे के दोनों पैर नाले में गिर चुके थे गाय अपने आपको संभाल नहीं पा रही थी, उसके आगे के दोनो पैर बाहर थे और वह उस के बल पर निकलने कोशिश कर रही थी, मगर गाय बहुत ही बड़ी थी और भार अधिक होने कारण वह बाहर नहीं आ पा रही थी, वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी उसके पैर आगे से छिल चुके थे ,क्योंकि उसके दोनों पैर पत्थर की सील पर थे, जिससे कि नाले को ढका जाता है और उसका किनारा नोकिला था।


मैं कुछ दूर जाकर अपनी स्कूटर होकर ये सब देख रहा था, मेरा पूरा ध्यान उसी पर था ,जब से मैंने उस गाय को देखा था । मैंने देखा कि लोग केवल उसे देख रहे हैं और चले जा रहे हैं, मैंने उस दिन इंसान का दिल  देखा, "लोग गाय हमारी माता है और गौ रक्षा हमारा सर्व धर्म है" कहने से तो नहीं कतराते पर जब रक्षा की बात आती है तो एक-दूसरे का मुंह जरूर देखते हैं।

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तभी मैं अपना स्कूटर लेकर वापस आया और गाय को पकड़ कर बाहर निकालने की कोशिश करने लगा, गाय भी थोड़ी हिम्मत दिखाने लगी और बाहर निकलने का प्रयास करने लगी । मैं उससे पहले पैर की तरफ से खींच रहा था, पर यह सब प्रयास सफल नहीं हो पाया क्योंकि वह पैर उठा तो रही थी पर बाहर नहीं आ पा रही थी। गाय का वजन बहुत अधिक था जो मेरे अकेले के बस का संभालना मुसकिल था फिर मैंने गाय को पीछे से धक्का लगाया उसने कुछ हिम्मत दिखाई वह उठी उसने अपना पूरा जोर लगाया मगर केवल मेरे और केवल उसके प्रयास से संभव नहीं था लोग अब भी खड़े होकर देख रहे थे तभी मैंने एक नवयुवक को कहा भाई थोड़ी मदद करो बाद में हाथ धो लेना । वह इस  हिचखिचाया पर आ गया , अब हम दो हो गए हमने फिर प्रयास किया फिर से हीमत दिखाई वह बाहर निकालने का प्रयास करने लगी, वह आगे से और मैं पीछे की ओर से धक्का दे रहा था, मगर हम सफल ना हो सके अब तक हमारे हाथ नाले के कीचड़ से लथपथ हो चुके थे , हमने और लोगों को भी कहा तब कई लोग आकर मदद करने लगे पर गाय अब तक हिम्मत हार चुकी थी, हमने उसे बार-बार बाहर निकालने को कहा पर वह नहीं निकल पा रही थी , सब ने मिलकर गाए को उठाने की कोशिश करी मगर यह भी सफल ना हो सका । क्योंकि गाय का वजन बहुत अधिक था ,गड्ढा भी बहुत गहरा था फिर हमने एक तरकीब सोची एक लोहे की मोटी राड लेकर आए और उसके दोनों पैरों के बीच पेट पर इस पार से उस पार तक लगाकर कुछ लोगों ने मिलकर उसको उठाया और मैंने पीछे से धक्का लगाया इस बार गाय ने भी हिम्मत दिखाई और वह बाहर निकल कर खड़ी हो गई।

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मेरा यह प्रयास सफल रहा और गाय को अधिक चोट नहीं लगी थी, वह कुछ ही देर में नॉर्मल हो गई मैंने वहीं पास के नल से हाथ धोया और घर आ गया मुझे अंदर से बहुत अच्छा लग रहा था, मैंने घर आकर सब को यह बात बताई कि आज ऐसा हुआ था।

 मेरा इस सच्ची घटना  को लिखने का एक ही मकसद है यदि आपको कभी भी कोई ऐसी हालत में दिखता है ,जिसकी आप मदद कर सकते हैं तो आप जरूर करिए चाहे वह गाय हो ,कुत्ता हो, जानवर हो या फिर इंसान हो, ऐसा करके आपको मन की शांति मिलेगी और आपको बहुत अच्छा लगेगा और यदि आप पहल करेंगे तो अपने आप और लोग भी मदद करने के लिए आएंगे , लोगों में सेवा भाव बढ़ेगा और सेवा भाव से बढ़कर दुनिया में कोई भी चीज़ नहीं है यह सेवा भाव ही आपको आपके जीवन में काम आएगी।


जब हम कोई ऐसा काम करते हैं तो "उसे करते तो हम हैं मगर देखते बहुत लोग हैं और उनके मन में भी ऐसा करने की भावना उत्पन्न होती है" आप जितना अधिक परोपकार करोगे सेवा भाव रखोगे उतना ही आपको अच्छा महसूस होगा कहीं ना कहीं वह सेवा भाव आपको आपके जीवन में सरलता और प्रेम भाव प्रवाहित करेगा, सेवा करने वाले को कभी किसी भी प्रकार के कष्ट झेलनेे में दिक्कत नहीं होती क्योंकि वह कष्टों को बहुत करीब से जानता है और उससे कैसे उबरते है वह भी भली भांति जानता है ।


आपको मेरा यह पोस्ट कैसा लगा अवश्य लिखें कमेंट बॉक्स में और इसे शेयर जरूर करिए ।

आपका अपना अनूप कुमार

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